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🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹🔱💧संत अमृत वाणी💧🔱🌹
🌟 हनुमान्जीका सेवाभाव :
सुमिरि पवनसुत पावन नामू ।
अपने बस करि राखे रामू ॥
(मानस, बाल॰२६/६)
हनुमान्ने महान् पवित्र नामका स्मरण करके श्रीरामजीको अपने वशमें कर रखा है । हरदम नाममें तल्लीन रहते हैं । ‘रहिये नाममें गलतान’ रात-दिन नाम जपते ही रहते हैं । हनुमान्जी महाराजको खुश करना हो तो राम-नाम सुनाओ, रामजीके चरित्र सुनाओ; क्योंकि ‘प्रभुचरित्र सुनिबेको रसिया’ भगवान्के चरित्र सुननेके बड़े रसिया हैं ।
रामजीने भी कह दिया, ‘धनिक तूँ पत्र लिखाउ’ हनुमान्जीको धनी कहा और अपनेको कर्जदार कहा । रामजीने देखा कि मैं तो बन गया कर्जदार, पर सीताजी कर्जदार न बनें तो घरमें ही दो मत हो जायेंगे । इसलिये रामजीका सन्देश लेकर सीताजीके चरणोंमें हनुमान्जी महाराज गये । जिससे सीताजी भी ऋणी बन गयीं । ‘बेटा, तूने आकर महाराजकी बात सुनाई । ऐसा सन्देश और कौन सुनायेगा !’ रामजीने देखा कि हम दोनों तो ऋणी बन गये, पर लक्ष्मण बाकी रह गया । जब लक्ष्मणके शक्तिबाण लगा, उस समय संजीवनी लाकर लक्ष्मणजीके प्राण बचाये ।‘लक्ष्मणप्राणदाता च’ इस प्रकार जंगलमें आये हुए तीनों तो ऋणी बन गये, पर घरवाले बाकी रह गये । भरतजीको जाकर सन्देश सुनाया कि रामजी महाराज आ रहे हैं । हनुमान्जीने बड़ी चतुराईसे संक्षेपमें सारी बात कह दी ।
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत ।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत ॥
(मानस, उत्तर॰२/५)
पहले हनुमान्जी आये थे तो भरतजीका बाण लगा था, उस समय उन्होंने वहाँकी बात कही कि ‘युद्ध हो रहा है, लक्ष्मणजीको मूर्च्छा हो गई है और सीताजीको रावण ले गया है ।’ अब किसकी विजय हुई, क्या हुआ ? इसका पता नहीं है ? यह सब इतिहास जानना चाहते हैं भरतजी महाराज । तो थोड़ेमें सब इतिहास सुना दिया । ऐसे ‘अपने बस करि राखे रामू ॥’ इनकी सेवासे रामजी अपने परिवारसहित वशमें हो गये । ऐसी कई कथाएँ आती हैं । हनुमान्जी महाराज सेवा बहुत करते थे । सेवा करनेवालेके वशमें सेवा लेनेवाला हो ही जाता है ।
सेवा करनेवाला ऐसे तो छोटा कहलाता है और दास होकर ही सेवा करता है; परन्तु सेवा करनेसे सेवक मालिक हो जाता है और सेवा लेनेवाला स्वामी उसका दास हो जाता है । स्वामीको सेवककी सब बात माननी पड़ती है ।संसारमें रहनेकी यह बहुत विलक्षण विद्या है‒सेवा करना ‘सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः’ सेवाका धर्म बड़ा कठोर है । भरतजी महाराज भी यही कहते हैं । ऐसे सेवा-धर्मको हनुमान्जी महाराजने निभाया ।
वे रघुनाथजी महाराजकी खूब सेवा करते थे । जंगलमें तो सेवा करते ही थे, राजगद्दी होनेपर भी वहाँ हनुमान्जी महाराज सेवा करनेके लिये साथमें रह गये । एक बारकी बात है । लक्ष्मणजी और सीताजीके मनमें आया कि हनुमान्जीको कोई सेवा नहीं देनी है । देवर-भौजाईने आपसमें बात कर ली कि महाराजकी सब सेवा हम करेंगे । सीताजीने हनुमान्जीकेसामने बात रखी कि ‘देखो बेटा ! तुम सेवा करते हो ना ! अब वह सेवा हम करेंगे । इस कारण तुम्हारे लिये कोई सेवा नहीं है ।’ हनुमान्जी बोले‒‘माताजी ! आठ पहर जो-जो सेवा आपलोग करोगे, उसमेंसे जो बचेगी, वह सेवा मैं करूँगा । इसलिये एक लिस्ट बना दो ।’ बहुत अच्छी बात । अब कोई सेवा हनुमान्के लिये बची नहीं । हनुमान्जी महाराजको बहाना मिल गया । भगवान्को जब उबासी आवे तो चुटकी बजा देवें ।
शास्त्रोंमें, स्मृतियोंमें ऐसा वचन आता है कि उबासी आनेपर शिष्यके लिये गुरुको भी चुटकी बजा देनी चाहिये । इसलिये रघुनाथजी महाराजको उबासी आते ही चुटकी बजा देते थे, यह सेवा हो गयी । अब वह उस कागजमें लिखी तो थी ही नहीं । चुटकी बजानेकी कौन-सी सेवा है ! रात्रिके समय हनुमान्जीको बाहर भेज दिया । अब तो वे छज्जेपर बैठे-बैठे मुँहसे ‘सीताराम सीताराम’ कीर्तन करते रहते और चुटकी भी बजाते रहते । न जाने कब भगवान्को उबासी आ जाय । अब चुटकी बजने लगे तो रामजीको भी जँभाई आनी शुरू हो गयी । सीताजीने देखा कि बात क्या हो गयी ? घबराकर कौशल्याजीसे कहा और सबको बुलाने लगी । वशिष्ठजीको बुलाया कि रामललाको आज क्या हो गया । वशिष्ठजीने पूछा‒‘हनुमान् कहाँ है ?’ ‘उसको तो बाहर भेज दिया ।’ ‘हनुमान्को तो बुलाओ ।’ हनुमान्जी ने आते ही ज्यों चुटकी बजाना बन्द कर दिया, त्यों ही भगवान्की जँभाई भी बन्द हो गयी । तब सीताजीने भी सेवा करनेकी खुली कर दी । इस प्रकार हृदयमें रामजीको वशमें कर लिया ।
भरतजीने भी हनुमान्जीसे कह दिया‘नाहिन तात उरिन मैं तोही ।’ तुमने जो बात सुनायी, उससे उऋण नहीं हो सकता । ‘अब प्रभु चरित सुनावहु मोही ।’ अब भगवान्के चरित्र सुनाओ । खबर सुनानेमात्रसे आप पहले ही ऋणी हो गये । चरित्र सुनानेसे और अधिक ऋणी हो जाओगे । भरतजीने विचार किया कि जब कर्जा ले लिया तो कम क्यों लें ? कर्जा तो ज्यादा हो जायगा, पर रामजीकी कथा तो सुन लें । हनुमान्जी महाराजको प्रसन्न करनेका उपाय भी यही है और उऋण होनेका उपाय ही यही है कि उनको रामजीकी कथा सुनाओ, चाहे उनसे सुन लो । रामजीकी चर्चासे वे खुश हो जाते हैं ।इस प्रकार हनुमान्जीके सब वशमें हो गये ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒ ‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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रामजीने भी कह दिया, ‘धनिक तूँ पत्र लिखाउ’ हनुमान्जीको धनी कहा और अपनेको कर्जदार कहा । रामजीने देखा कि मैं तो बन गया कर्जदार, पर सीताजी कर्जदार न बनें तो घरमें ही दो मत हो जायेंगे । इसलिये रामजीका सन्देश लेकर सीताजीके चरणोंमें हनुमान्जी महाराज गये । जिससे सीताजी भी ऋणी बन गयीं । ‘बेटा, तूने आकर महाराजकी बात सुनाई । ऐसा सन्देश और कौन सुनायेगा !’ रामजीने देखा कि हम दोनों तो ऋणी बन गये, पर लक्ष्मण बाकी रह गया । जब लक्ष्मणके शक्तिबाण लगा, उस समय संजीवनी लाकर लक्ष्मणजीके प्राण बचाये ।‘लक्ष्मणप्राणदाता च’ इस प्रकार जंगलमें आये हुए तीनों तो ऋणी बन गये, पर घरवाले बाकी रह गये । भरतजीको जाकर सन्देश सुनाया कि रामजी महाराज आ रहे हैं । हनुमान्जीने बड़ी चतुराईसे संक्षेपमें सारी बात कह दी ।
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत ।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत ॥
(मानस, उत्तर॰२/५)
पहले हनुमान्जी आये थे तो भरतजीका बाण लगा था, उस समय उन्होंने वहाँकी बात कही कि ‘युद्ध हो रहा है, लक्ष्मणजीको मूर्च्छा हो गई है और सीताजीको रावण ले गया है ।’ अब किसकी विजय हुई, क्या हुआ ? इसका पता नहीं है ? यह सब इतिहास जानना चाहते हैं भरतजी महाराज । तो थोड़ेमें सब इतिहास सुना दिया । ऐसे ‘अपने बस करि राखे रामू ॥’ इनकी सेवासे रामजी अपने परिवारसहित वशमें हो गये । ऐसी कई कथाएँ आती हैं । हनुमान्जी महाराज सेवा बहुत करते थे । सेवा करनेवालेके वशमें सेवा लेनेवाला हो ही जाता है ।
सेवा करनेवाला ऐसे तो छोटा कहलाता है और दास होकर ही सेवा करता है; परन्तु सेवा करनेसे सेवक मालिक हो जाता है और सेवा लेनेवाला स्वामी उसका दास हो जाता है । स्वामीको सेवककी सब बात माननी पड़ती है ।संसारमें रहनेकी यह बहुत विलक्षण विद्या है‒सेवा करना ‘सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः’ सेवाका धर्म बड़ा कठोर है । भरतजी महाराज भी यही कहते हैं । ऐसे सेवा-धर्मको हनुमान्जी महाराजने निभाया ।
वे रघुनाथजी महाराजकी खूब सेवा करते थे । जंगलमें तो सेवा करते ही थे, राजगद्दी होनेपर भी वहाँ हनुमान्जी महाराज सेवा करनेके लिये साथमें रह गये । एक बारकी बात है । लक्ष्मणजी और सीताजीके मनमें आया कि हनुमान्जीको कोई सेवा नहीं देनी है । देवर-भौजाईने आपसमें बात कर ली कि महाराजकी सब सेवा हम करेंगे । सीताजीने हनुमान्जीकेसामने बात रखी कि ‘देखो बेटा ! तुम सेवा करते हो ना ! अब वह सेवा हम करेंगे । इस कारण तुम्हारे लिये कोई सेवा नहीं है ।’ हनुमान्जी बोले‒‘माताजी ! आठ पहर जो-जो सेवा आपलोग करोगे, उसमेंसे जो बचेगी, वह सेवा मैं करूँगा । इसलिये एक लिस्ट बना दो ।’ बहुत अच्छी बात । अब कोई सेवा हनुमान्के लिये बची नहीं । हनुमान्जी महाराजको बहाना मिल गया । भगवान्को जब उबासी आवे तो चुटकी बजा देवें ।
शास्त्रोंमें, स्मृतियोंमें ऐसा वचन आता है कि उबासी आनेपर शिष्यके लिये गुरुको भी चुटकी बजा देनी चाहिये । इसलिये रघुनाथजी महाराजको उबासी आते ही चुटकी बजा देते थे, यह सेवा हो गयी । अब वह उस कागजमें लिखी तो थी ही नहीं । चुटकी बजानेकी कौन-सी सेवा है ! रात्रिके समय हनुमान्जीको बाहर भेज दिया । अब तो वे छज्जेपर बैठे-बैठे मुँहसे ‘सीताराम सीताराम’ कीर्तन करते रहते और चुटकी भी बजाते रहते । न जाने कब भगवान्को उबासी आ जाय । अब चुटकी बजने लगे तो रामजीको भी जँभाई आनी शुरू हो गयी । सीताजीने देखा कि बात क्या हो गयी ? घबराकर कौशल्याजीसे कहा और सबको बुलाने लगी । वशिष्ठजीको बुलाया कि रामललाको आज क्या हो गया । वशिष्ठजीने पूछा‒‘हनुमान् कहाँ है ?’ ‘उसको तो बाहर भेज दिया ।’ ‘हनुमान्को तो बुलाओ ।’ हनुमान्जी ने आते ही ज्यों चुटकी बजाना बन्द कर दिया, त्यों ही भगवान्की जँभाई भी बन्द हो गयी । तब सीताजीने भी सेवा करनेकी खुली कर दी । इस प्रकार हृदयमें रामजीको वशमें कर लिया ।
भरतजीने भी हनुमान्जीसे कह दिया‘नाहिन तात उरिन मैं तोही ।’ तुमने जो बात सुनायी, उससे उऋण नहीं हो सकता । ‘अब प्रभु चरित सुनावहु मोही ।’ अब भगवान्के चरित्र सुनाओ । खबर सुनानेमात्रसे आप पहले ही ऋणी हो गये । चरित्र सुनानेसे और अधिक ऋणी हो जाओगे । भरतजीने विचार किया कि जब कर्जा ले लिया तो कम क्यों लें ? कर्जा तो ज्यादा हो जायगा, पर रामजीकी कथा तो सुन लें । हनुमान्जी महाराजको प्रसन्न करनेका उपाय भी यही है और उऋण होनेका उपाय ही यही है कि उनको रामजीकी कथा सुनाओ, चाहे उनसे सुन लो । रामजीकी चर्चासे वे खुश हो जाते हैं ।इस प्रकार हनुमान्जीके सब वशमें हो गये ।
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