🚩🔱 ❄ «ॐ»«ॐ»«ॐ» ❄ 🔱🚩
※══❖═══▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩═══❖══※
🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹🔱💧संत अमृत वाणी💧🔱🌹
🌟 सत्संगकी महिमा :
(गत ब्लॉगसे आगेका)
सत्संगमें व्यापार एक ही चलता है, भगवान्की बात । उसीको कहना, सुनना, समझना, विचार करना, चिन्तन करना ।भगवान् जिसपर कृपा करते हैं, उसको सत्संग देते हैं । सत्संग दिया तो समझो भगवान्के खोजनेकी बढ़िया चीज मिल गयी । जो भगवान्के प्यारे होते हैं, वे भगवान्के भीतर रहते हैं । यह हृदयका धन है । माता-पिता जिस बालकपर ज्यादा स्नेह रखते हैं, उसको अपनी पूँजी बता देते हैं कि बेटा, देखो यह धन है । ऐसे ही भगवान् जब बहुत कृपा करते हैं तो अपने खजानेकी चीज (पूँजी) सन्त-महात्माओंकोदेते हैं‒लो बेटा, यह धन हमारे पास है ।
सत्संग मिल जाय तो समझना चाहिये कि हमारा उद्धार करनेकी भगवान्के मनमें विशेषतासे आ गयी; नहीं तो सत्संग क्यों दिया ? हम तो ऐसे ही जन्मते-मरते रहते, यह अडंगा क्यों लगाया ? यह तो कल्याण करनेके लिये लगाया है । जिसे सत्संग मिल गया तो उसे यह समझना चाहिये कि भगवान्ने उसे निमन्त्रण दे दिया कि आ जाओ । ठाकुरजी बुलाते हैं, अपने तो प्रेमसे सत्संग करो, भजन-स्मरण करो, जप करो । सत्संग करनेमें सब स्वतन्त्र हैं । सत् परमात्मा सब जगह मौजूद है । वह परमात्मा मेरा है और मैं उसका हूँ‒ऐसा मानकर सत्संग करे तो वह निहाल हो जाय ।
सत्संग कल्पद्रुम है । सत्संग अनन्त जन्मोंके पापोंको नष्ट-भ्रष्ट कर देता है । जहाँ सत्की तरफ गया कि असत् नष्ट हुआ । असत् तो बेचारा नष्ट ही होता है । जीवित रहता ही नहीं । इसने पकड़ लिया असत्को । अगर यह सत्की तरफ जायगा तो असत् तो खत्म होगा ही । सत्संग अज्ञानरूपी अन्धकारको दूर कर देता है । महान् परमानन्द-पदवीको दे देता है । यह परमानन्द-पदवी दान करता है । कितनी विलक्षण बात है ! सत्संग क्या नहीं करता ? सत्संग सब कुछ करता है । ‘प्रसूते सद्बुद्धिम् ।’ सत्संग श्रेष्ठ बुद्धि पैदा करता है । बुद्धि शुद्ध हो जाती है ।
गोस्वामीजी महाराज लिखते हैं‒
मज्जन फल पखिय ततकाला ।
काक होहिं पिक बकउ मराला ॥
(मानस १/२/१)
साधु-समाजरूपी प्रयागमें डुबकी लगानेसे तत्काल फल मिलता है । कौआ कोयल बन जाता है, बगुला हंस बन जाता है अर्थात् सत्संग करनेसे रंग नहीं बदलता, ढंग बदला जाता है । जो वाणी कौआकी तरह है, वह कोयलकी तरह हो जाती है । जो बगुला होता है, वह हंसकी तरह नीर-क्षीर विवेक करने लगता है । सत्संगसे आचरण और विवेक तत्काल बदल जाते हैं । सत्संग मिल जाय तो ये बदल जाते हैं अगर नहीं बदले तो, या तो सत्संग नहीं मिला या सत्संगमें आप नहीं गये । दोनोंके मिलनेसे ही काम बनता है । पारस लोहेको सोना बना दे, अगर मिले तब तो, पर बीचमें पत्ता रख दिया जाय तो फिर कुछ नहीं बननेका ।
भगवान्के प्रति व सन्त-महात्माओंके प्रति निष्काम-भावसे प्रेम करो । भगवान् मीठे लगें, प्यारे लगें, अच्छे लगें । क्यों लगें ? क्योंकि वे मेरे हैं । बच्चेको माँ अच्छी लगती है । क्यों अच्छी लगती है ? क्योंकि मेरी माँ है । ऐसे ही भगवान्के साथ अपनापन रहे, तो यह सत्संग होता है ।भगवान् हमारे हैं, हम भगवान्के हैं । कैसी बढ़िया बात है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹۞☀∥ राधेकृष्ण: शरणम् ∥☀۞🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹: कृष्णा : श्री राधा प्रेमी : 🌹
https://plus.google.com/113265611816933398824
मोबाइल नं. : 9009290042
👉🏻 एक बार प्रेम से बोलिए ...
🙌🏻 जय जय श्री राधे 🙌🏻
🌹 प्यारी .. श्री .. राधे ..🌹
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🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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सत्संगमें व्यापार एक ही चलता है, भगवान्की बात । उसीको कहना, सुनना, समझना, विचार करना, चिन्तन करना ।भगवान् जिसपर कृपा करते हैं, उसको सत्संग देते हैं । सत्संग दिया तो समझो भगवान्के खोजनेकी बढ़िया चीज मिल गयी । जो भगवान्के प्यारे होते हैं, वे भगवान्के भीतर रहते हैं । यह हृदयका धन है । माता-पिता जिस बालकपर ज्यादा स्नेह रखते हैं, उसको अपनी पूँजी बता देते हैं कि बेटा, देखो यह धन है । ऐसे ही भगवान् जब बहुत कृपा करते हैं तो अपने खजानेकी चीज (पूँजी) सन्त-महात्माओंकोदेते हैं‒लो बेटा, यह धन हमारे पास है ।
सत्संग मिल जाय तो समझना चाहिये कि हमारा उद्धार करनेकी भगवान्के मनमें विशेषतासे आ गयी; नहीं तो सत्संग क्यों दिया ? हम तो ऐसे ही जन्मते-मरते रहते, यह अडंगा क्यों लगाया ? यह तो कल्याण करनेके लिये लगाया है । जिसे सत्संग मिल गया तो उसे यह समझना चाहिये कि भगवान्ने उसे निमन्त्रण दे दिया कि आ जाओ । ठाकुरजी बुलाते हैं, अपने तो प्रेमसे सत्संग करो, भजन-स्मरण करो, जप करो । सत्संग करनेमें सब स्वतन्त्र हैं । सत् परमात्मा सब जगह मौजूद है । वह परमात्मा मेरा है और मैं उसका हूँ‒ऐसा मानकर सत्संग करे तो वह निहाल हो जाय ।
सत्संग कल्पद्रुम है । सत्संग अनन्त जन्मोंके पापोंको नष्ट-भ्रष्ट कर देता है । जहाँ सत्की तरफ गया कि असत् नष्ट हुआ । असत् तो बेचारा नष्ट ही होता है । जीवित रहता ही नहीं । इसने पकड़ लिया असत्को । अगर यह सत्की तरफ जायगा तो असत् तो खत्म होगा ही । सत्संग अज्ञानरूपी अन्धकारको दूर कर देता है । महान् परमानन्द-पदवीको दे देता है । यह परमानन्द-पदवी दान करता है । कितनी विलक्षण बात है ! सत्संग क्या नहीं करता ? सत्संग सब कुछ करता है । ‘प्रसूते सद्बुद्धिम् ।’ सत्संग श्रेष्ठ बुद्धि पैदा करता है । बुद्धि शुद्ध हो जाती है ।
गोस्वामीजी महाराज लिखते हैं‒
मज्जन फल पखिय ततकाला ।
काक होहिं पिक बकउ मराला ॥
(मानस १/२/१)
साधु-समाजरूपी प्रयागमें डुबकी लगानेसे तत्काल फल मिलता है । कौआ कोयल बन जाता है, बगुला हंस बन जाता है अर्थात् सत्संग करनेसे रंग नहीं बदलता, ढंग बदला जाता है । जो वाणी कौआकी तरह है, वह कोयलकी तरह हो जाती है । जो बगुला होता है, वह हंसकी तरह नीर-क्षीर विवेक करने लगता है । सत्संगसे आचरण और विवेक तत्काल बदल जाते हैं । सत्संग मिल जाय तो ये बदल जाते हैं अगर नहीं बदले तो, या तो सत्संग नहीं मिला या सत्संगमें आप नहीं गये । दोनोंके मिलनेसे ही काम बनता है । पारस लोहेको सोना बना दे, अगर मिले तब तो, पर बीचमें पत्ता रख दिया जाय तो फिर कुछ नहीं बननेका ।
भगवान्के प्रति व सन्त-महात्माओंके प्रति निष्काम-भावसे प्रेम करो । भगवान् मीठे लगें, प्यारे लगें, अच्छे लगें । क्यों लगें ? क्योंकि वे मेरे हैं । बच्चेको माँ अच्छी लगती है । क्यों अच्छी लगती है ? क्योंकि मेरी माँ है । ऐसे ही भगवान्के साथ अपनापन रहे, तो यह सत्संग होता है ।भगवान् हमारे हैं, हम भगवान्के हैं । कैसी बढ़िया बात है ।
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