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 🌹🌸🌹संत अमृत वाणी🌹🌸🌹
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🌹सत्संगकी महिमा :

(गत ब्लॉगसे आगेका)

तुलसी पूरब पाप ते,  हरि चर्चा न सुहाय ।

जैसे ज्वर के जोर ते, भूख बिदा ह्वै जाय ॥

मनुष्यको बुखार आ जाता है तो भूख नहीं लगती, अन्न अच्छा नहीं लगता । अन्न अच्छा नहीं लगता तो इसका अर्थ है उसको रोग है । जब पित्तका जोर होता है तो मिश्री भी कड़वी लगती है । मिश्री कड़वी नहीं है, उसकी जीभ कड़वी है । इसी तरह जिसे भगवान्‌की चर्चा सुहाती नहीं तो इसका कारण है कि उसे कोई बड़ा रोग हो गया । कथामें रुचि नहीं होती तो स्पष्ट है कि अन्तकरण बहुत मैला है, मामूली मैला नहीं, ज्यादा मात्रामें मैला है ।

प्रश्न‒ज्यादा मैला होनेपर क्या उसको सत्संग दूर नहीं कर सकता ?

उत्तर‒सत्संग सब मैलोंको दूर कर सकता है; पर मनुष्य पासमें ही नहीं आता । बुखारका जोर होनेसे अन्न अच्छा नहीं लगता और मिश्री कड़वी लगती है । कैसे करें ? मिश्री कड़वी लगे तो भी खाते रहो । मिश्रीमें खुदमें ताकत है कि वह पित्तको शान्त कर देगी और मीठी लगने लगेगी ।ऐसे ही भजनेमं रुचि नहीं हो तो भी भजन करते रहो । भजन करते-करते ज्यों-ज्यों पाप नष्ट होते हैं, त्यों-त्यों उसमें मिठास आने लगता है । सत्संगमें ऐसे लोग आये हैं जो रुचि नहीं रखते थे । पर किसीके कहनेसे आये तो फिर विशेषतासे आने लग गये ।

प्रश्न‒सत्संग प्रतिदिन क्यों किया जाय ?

उत्तर‒सत्संगकी महिमा क्या कहें ?सत्संग तो रोजाना करनेका है, नित्यप्रति करनेका है । यह त्यागनेका है ही नहीं ।सत्संगसे सांसारिक बाधाएँ मिट जाती हैं । कोई बीमार होता है, कोई लड़ाई करता है, किसीको कोई बाधा लग जाती है‒ये सब तरह-तरहके साँप हैं जो काटते हैं । उनसे जहर चढ़ जाता है तो वह घबरा जाता है । वह अगर सत्संगमें जाकर सत्संगरूपी बूटी सूँघ ले तो स्वस्थ हो जाय, प्रसन्न हो जाय । चित्तकी चिन्ता दूर हो जाय । फिर जाकर संसारका काम करे । काम करते-करते उसमें उलझ जाते हैं तो जहर चढ़ जाता है । वह जहर सत्संगमें जानेसे ठीक हो जाता है । इस तरह करते हुए हमारे जो शत्रु हैं‒काम, क्रोध, राग, द्वेष आदि वे सब-के-सब मर जाते हैं । जैसे अन्न, जल आवश्यक है, साँस लेना आवश्यक है, उसी तरह सत्संग भी प्रतिदिन करना जरूरी है । वह तो रोजाना खुराक है । सत्संगसे बहुत शान्ति मिलती है । बहुत-सी मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं । सत्संग सूर्यकी तरह होता है जो अन्तःकरणके अन्धकारको दूर कर देता है । उससे पाप दूर हो जाते हैं, बिना पूछे शंकाएँ दूर हो जाती हैं । तरह-तरहकी जो हृदयमें उलझनें हैं, वे सुलझ जाती हैं । सत्संग जहाँ हो जाय, मिल जाय तो समझना चाहिये कि भगवान्‌ने विशेष कृपा की । भगवान्‌ शंकरने दो ही बात माँगी‒‘पद सरोज अनपायनी भगति’ और ‘सदा सत्संग ।’

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे

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