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  🌹🌸🌹संत अमृत वाणी🌹🌸🌹
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  🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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🌹सत्‌-असत्‌का विवेक :

( गत ब्लॉग से आगे )

       अपनेमें दोषोंकी स्थापना हमने ही की है । हमने ही उनको सत्ता देकर दृढ़ किया है । अतः दोषों को सत्ता न देकर अपने में और दूसरों में निर्दोषता की स्थापना करना अर्थात्‌ निर्दोषता का अनुभव करना हमारा कर्तव्य है । अपने में और दूसरों में निर्दोषता का अनुभव करना ही तत्त्वज्ञान है, जीवन्मुक्ति है ।

(११)

       हमारी सत्ता किसी वस्तु, व्यक्ति और क्रियाके अधीन नहीं है । प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति और विनाश होता है, प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति और विनाश होता है, प्रत्येक व्यक्ति का जन्म (संयोग) और मरण (वियोग) होता है एवं प्रत्येक क्रिया का आरम्भ और अन्त होता है । परन्तु इन तीनों को जानने वाली हमारी चिन्मय सत्ता का कभी उत्पत्ति-विनाश, जन्म-मरण (संयोग-वियोग) और आरम्भ-अन्त नहीं होता । वह सत्ता नित्य-निरन्तर स्वतः ज्यों-की-त्यों रहती है । उस सत्ता का कभी अभाव नहीं होता‒
‘नाभावो विद्यते सतः’ ।
उस सत्तामें स्वतः-स्वाभाविक स्थिति के अनुभवका नाम ही जीवन्मुक्ति है ।

       मनुष्यको यह वहम रहता है कि अमुक वस्तुकी प्राप्ति होनेपर, अमुक व्यक्ति के मिलने पर तथा अमुक क्रिया को करने पर मैं स्वाधीन (मुक्त) हो जाऊँगा । परन्तु ऐसी कोई वस्तु, व्यक्ति और क्रिया है ही नहीं, जिससे मनुष्य स्वाधीन हो जाय । वस्तु, व्यक्ति और क्रिया तो मनुष्य को पराधीन बनाने वाली हैं । उनसे असंग होनेपर ही मनुष्य स्वाधीन हो सकता है । अतः साधक को चाहिये कि वह वस्तु, व्यक्ति और क्रियाके बिना अपने को अकेला अनुभव करने का स्वभाव बनाये, उस अनुभव को महत्त्व दे, उसमें अधिक-से-अधिक स्थित रहे । यह मनुष्यमात्र का अनुभव है कि सुषुप्ति के समय वस्तु, व्यक्ति और क्रियाके बिना भी हम स्वतः रहते हैं; परन्तु हमारे बिना वस्तु, व्यक्ति और क्रिया नहीं रहती । जब जाग्रत्‌में भी हम इनके बिना रहनेका स्वभाव बना लेंगे, तब हम स्वाधीन अर्थात्‌ मुक्त हो जायँगे । वस्तु, व्यक्ति और क्रिया के सम्बन्ध की मान्यता ही हमें स्वाधीन नहीं होने देती और हमारे न चाहते हुए भी हमें पराधीन बना देती है ।

      हमें विचार करना चाहिये कि ऐसी कौन-सी वस्तु है, जो सदा हमारे पास रहेगी और हम सदा उसके पास रहेंगे ? ऐसा कौन-सा व्यक्ति है, जो सदा हमारे साथ रहेगा और हम सदा उसके साथ रहेंगे ? ऐसी कौन-सी क्रिया है, जिसको हम सदा करते रहेंगे और जो सदा हमसे होती रहेगी ? सदा के लिये हमारे साथ न कोई वस्तु रहेगी, न कोई व्यक्ति रहेगा और न कोई क्रिया रहेगी । एक दिन हमें वस्तु, व्यक्ति और क्रियासे रहित होना ही पड़ेगा । अगर हम वर्तमान में ही उनके वियोग को स्वीकार कर लें, उनसे असंग हो जायँ तो जीवन्मुक्ति स्वतःसिद्ध है ।

    ( शेष आगे के ब्लॉग में )

‒ ‘अमरताकी ओर’ पुस्तकसे

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