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   🌹🔱💧संत अमृत वाणी💧🔱🌹

🌹 सुखासक्तिसे छूटनेका उपाय :

( गत ब्लाग से आगे )

आप कामनाकी उत्पत्ति और विनाशको जाननेवाले हो । जो उत्पत्ति और विनाशको जाननेवाला होता है, वह अविनाशी होता है, बड़ा होता है । जो उत्पन्न और नष्ट होता है, वह छोटा होता है, पर जो उसकी उत्पत्ति और विनाशको जाननेवाला होता है, वह बड़ा होता है ।

श्रोता‒सुखकी आसक्ति हमारेपर एकदम अधिकार जमा लेती है । उस समय हमें अपने बलका पता ही नहीं लगता । हम निर्बल हो जाते हैं, पराजित हो जाते हैं ।

स्वामीजी‒जिस समय कामना पैदा होती है, आसक्ति पैदा होती है, उस समय उसका बड़ा असर पड़ता है‒यह बात ठीक है; परन्तु इस बातपर विश्वास रखो कि सत्‌-वस्तु तो निष्कामता ही है । अतः निष्कामभावको सकामभाव दबा ही नहीं सकता । सकामभाव उत्पन्न और नष्ट होता है, पर निष्कामभाव सकामभावके उत्पन्न होनेसे पहले भी रहता है, सकामभावके नष्ट होनेके बाद भी रहता है और सकामभावके समय भी ज्यों-का-त्यों रहता है । वास्तवमें निष्कामभाव ही नित्य है । इसलिये कामना पैदा होनेपर आप उससे हार स्वीकार मत करो । बड़ी-से-बड़ी कामना हो जाय, कामनामें आप बह जाओ, कामनाके वशीभूत हो जाओ तो भी आप कृपा करके इतना खयाल रखो कि यह कामना टिकनेवाली नहीं है और निष्कामता मिटनेवाली नहीं है । कामना तो उत्पन्न और नष्ट होती है, पर आप हरदम रहते हो । अतः कामना आपमें तो नहीं हुई, फिर वह आपको कैसे ढक सकती है, आपको कैसे पराजित कर सकती है ? आप जिस समय अपनेको पराजित मानते हो, उस समय भी यह बात जाग्रत्‌ रखो कि कामना आगन्तुक है, यह रहनेवाली नहीं है । भगवान्‌ने साफ कहा है कि आप इनके आने-जानेका खयाल रखो । फिर सुगमतासे इनपर विजय प्राप्त कर लोगे । आप कामनामें कितने ही बह जाओ, पर‘आगमापायिनोऽनित्याः’ को याद रखो ।मैंने कई बार कहा है कि अरे भाई ! यह मन्त्र है ! जैसे बिच्छू डंक मार दे तो उसका मन्त्रद्वारा झाड़ा करनेसे जहर उतर जाता है, ऐसे ही आप ‘आगमापायिनोऽनित्याः’का जप शुरू कर दें तो कामना आदि आगन्तुक दोषोंका जहर उतर जायगा, उनकी जड़ कट जायगी । इतनी शक्ति है भगवान्‌के कहे हुए इन शब्दोंमें ! यह क्रियात्मक साधन है और बड़ा सुगम है, आप करके देखो ।

भागवतके ये पद मेरेको बहुत प्रिय लगते हैं‒‘जुषमाणश्च तान् कामान् दुःखोदर्कांश्च गर्हयन्’ (११/२०/२८) ।अगर भोगोंका त्याग न कर सके तो उनको दुःखरूप समझकर, उनकी निन्दा करते हुए भोगें । भोगोंको भोगते हुए भी उनको अच्छा न समझें, उनको नापसन्द करें, तो उनसे छुटकारा मिल जायगा । उनके परवश होनेपर भी आप उनसे दबो मत । केवल इतना याद रखो कि हम रहनेवाले हैं और ये जानेवाले हैं । आप करके देखो । यह साधन कठिन है क्या ? अभी इसका विचार कर लो, मनन कर लो तो फिर इसको भूलोगे नहीं । असत्‌में रहनेकी ताकत नहीं है । असत्‌की सत्ता नहीं होती और सत्‌का अभाव नहीं होता‒‘नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः’ (गीता २/१६) । आपकी सत्ता है और आप असत्‌से दब जाते हैं, तो यह दबना इतना दोषी नहीं है, जितना दोषी असत्‌का महत्त्व मानना है कि यह तो बड़ा प्रबल है । यह मान्यता ही गजब करती है ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒ ‘स्वाधीन कैसे बनें ?’ पुस्तकसे

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