🚩🔱 ❄ «ॐ»«ॐ»«ॐ» ❄ 🔱🚩
※══❖═══▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩═══❖══※
🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹🔱💧संत अमृत वाणी💧🔱🌹
🌟 भक्तशिरोमणि श्रीहनुमान्जीकी दास्य-रति :
(गत ब्लॉगसे आगेका)
सेव्यने सेवा स्वीकार कर ली‒इसी बातसे भक्त अपनेको कृत्यकृत्य मानता है । इतना ही नहीं, अपने इष्टदेवके भक्तोंकी भी सेवाका अवसर मिल जाय तो वह इसको अपना सौभाग्य समझता है । हनुमान्जी सनकादिकोंसे कहते हैं‒
ऐहिकेषु च कार्येषु महापत्सु च सर्वदा ॥
नैव योज्यो राममन्त्रः केवलं मोक्षसाधकः ।
ऐहिके समनुप्राप्ते मां स्मरेद् रामसेवकम् ॥
यो रामं संस्मरेन्नित्यं भक्त्या मनुपरायणः ।
तस्याहमिष्टसंसिद्ध्यै दीक्षितोऽस्मि मुनिश्वराः ॥
वाञ्छितार्थं प्रदास्यामि भक्तानां राघवस्य तु ।
सर्वथा जागरूकोऽस्मि रामकार्यधुरंधरः ॥
(रामरहस्योपनिषद् ४/१०-१३)
‘लौकिक कार्योंके लिये तथा बड़ी-से-बड़ी आपत्तियोंमें भी कभी राममन्त्रका उपयोग नहीं करना चाहिये । वह तो संकट आ पड़े तो केवल मोक्षका साधक है । यदि कोई लौकिक कार्य या संकट आ पड़े तो मुझ राम-सेवकका स्मरण करे । मुनीश्वरो ! जो नित्य भक्तिभावसे मन्त्र-जपमें संलग्न होकर भगवान् रामका सम्यक् स्मरण करता है, उसके अभीष्टकी पूर्ण सिद्धिके लिये मैं दीक्षा लिये बैठा हूँ । श्रीरघुनाथजीके भक्तोंको मैं अवश्य मनोवाञ्छित वस्तु प्रदत्त करूँगा । श्रीरामका कार्यभार मैंने अपने सिरपर उठा रखा है और उसके लिये मैं सर्वथा जागरूक हूँ ।’
हनुमान्जी भगवान् रामकी सेवा करनेमें इतने दक्ष हैं कि भगवान्के मनमें संकल्प उठनेसे पहले ही वे उसकी पूर्ति कर देते हैं ! सीताजीकी खोजके लिये जाते समय हनुमान्जीको केवल उनका कुशल समाचार लानेके लिये ही कहा गया था । परन्तु सीताजीकी खोजके साथ-साथ उन्होंने इन बातोंका भी पता लगा लिया कि लंकाके दुर्ग किस विधिसे बने हैं, किस प्रकार लंकापुरीकी रक्षाकी व्यवस्था की गयी है, किस तरह सेनाओंसे सुरक्षित है, वहाँ सैनिकों और वाहनोंकी संख्या कितनी है आदि-आदि । जब अशोकवाटिकामें उन्होंने त्रिजटाका स्वप्न सुना‒
सपनें बानर लंका जारी । जातुधान सेना सब मारी ॥
(मानस ५/११/२)
तब इसको हनुमान्जी भगवान्की प्रेरणा (आज्ञा) समझी । जब उनकी पूँछमें आग लगानेकी बात चली, तब इस बातकी पूरी तरह पुष्टि हो गयी‒
बचन सुनत कपि मन मुसकाना ।
भई सहाय सारद मैं जाना ॥
(मानस ५/२५/२)
अतः हनुमान्जी भगवान्की लंका-दहनरूप सेवाका कार्य भलीभाँति पूरा कर दिया ! इतना ही नहीं, रामजीको लंकापर विजय करनेमें सुगमता पड़े, इसके लिये उन्होंने जलानेके साथ-साथ लंकाकी आवश्यक युद्ध-सामग्रीको भी नष्ट कर दिया, खाइयोंको पाट दिया, परकोटोंको गिरा दिया और विशाल राक्षस-सेनाका एक चौथाई भाग नष्ट कर दिया (वाल्मीकि॰ युद्ध॰३) । आगे राक्षसोंकी संख्या न बढ़े, इसके लिये उन्होंने भयंकर गर्जना करके राक्षसियोंके गर्भ भी गिरा दिये‒
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी ।
गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी ॥
(मानस ५/२८/१)
कारण कि भगवान्का अवतार राक्षसोंका विनाश करनेके लिये हुआ है‒‘विनाशय च दुष्कृताम्’ (गीता ४/८)और हनुमान्जीको भगवान्का कार्य ही करना है‒‘राम काज लगि तव अवतारा’ (मानस ४/३०/३) ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘कल्याण-पथ’ पुस्तक से
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹۞☀∥ राधेकृष्ण: शरणम् ∥☀۞🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹: कृष्णा : श्री राधा प्रेमी : 🌹
https://plus.google.com/113265611816933398824
🙏🏻 एक बार प्रेम से बोलिए ..
🙌🏻 जय जय श्री राधे 🙌🏻
🌹 प्यारी .. श्री .. राधे ..🌹
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🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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सेव्यने सेवा स्वीकार कर ली‒इसी बातसे भक्त अपनेको कृत्यकृत्य मानता है । इतना ही नहीं, अपने इष्टदेवके भक्तोंकी भी सेवाका अवसर मिल जाय तो वह इसको अपना सौभाग्य समझता है । हनुमान्जी सनकादिकोंसे कहते हैं‒
ऐहिकेषु च कार्येषु महापत्सु च सर्वदा ॥
नैव योज्यो राममन्त्रः केवलं मोक्षसाधकः ।
ऐहिके समनुप्राप्ते मां स्मरेद् रामसेवकम् ॥
यो रामं संस्मरेन्नित्यं भक्त्या मनुपरायणः ।
तस्याहमिष्टसंसिद्ध्यै दीक्षितोऽस्मि मुनिश्वराः ॥
वाञ्छितार्थं प्रदास्यामि भक्तानां राघवस्य तु ।
सर्वथा जागरूकोऽस्मि रामकार्यधुरंधरः ॥
(रामरहस्योपनिषद् ४/१०-१३)
‘लौकिक कार्योंके लिये तथा बड़ी-से-बड़ी आपत्तियोंमें भी कभी राममन्त्रका उपयोग नहीं करना चाहिये । वह तो संकट आ पड़े तो केवल मोक्षका साधक है । यदि कोई लौकिक कार्य या संकट आ पड़े तो मुझ राम-सेवकका स्मरण करे । मुनीश्वरो ! जो नित्य भक्तिभावसे मन्त्र-जपमें संलग्न होकर भगवान् रामका सम्यक् स्मरण करता है, उसके अभीष्टकी पूर्ण सिद्धिके लिये मैं दीक्षा लिये बैठा हूँ । श्रीरघुनाथजीके भक्तोंको मैं अवश्य मनोवाञ्छित वस्तु प्रदत्त करूँगा । श्रीरामका कार्यभार मैंने अपने सिरपर उठा रखा है और उसके लिये मैं सर्वथा जागरूक हूँ ।’
हनुमान्जी भगवान् रामकी सेवा करनेमें इतने दक्ष हैं कि भगवान्के मनमें संकल्प उठनेसे पहले ही वे उसकी पूर्ति कर देते हैं ! सीताजीकी खोजके लिये जाते समय हनुमान्जीको केवल उनका कुशल समाचार लानेके लिये ही कहा गया था । परन्तु सीताजीकी खोजके साथ-साथ उन्होंने इन बातोंका भी पता लगा लिया कि लंकाके दुर्ग किस विधिसे बने हैं, किस प्रकार लंकापुरीकी रक्षाकी व्यवस्था की गयी है, किस तरह सेनाओंसे सुरक्षित है, वहाँ सैनिकों और वाहनोंकी संख्या कितनी है आदि-आदि । जब अशोकवाटिकामें उन्होंने त्रिजटाका स्वप्न सुना‒
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तब इसको हनुमान्जी भगवान्की प्रेरणा (आज्ञा) समझी । जब उनकी पूँछमें आग लगानेकी बात चली, तब इस बातकी पूरी तरह पुष्टि हो गयी‒
बचन सुनत कपि मन मुसकाना ।
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अतः हनुमान्जी भगवान्की लंका-दहनरूप सेवाका कार्य भलीभाँति पूरा कर दिया ! इतना ही नहीं, रामजीको लंकापर विजय करनेमें सुगमता पड़े, इसके लिये उन्होंने जलानेके साथ-साथ लंकाकी आवश्यक युद्ध-सामग्रीको भी नष्ट कर दिया, खाइयोंको पाट दिया, परकोटोंको गिरा दिया और विशाल राक्षस-सेनाका एक चौथाई भाग नष्ट कर दिया (वाल्मीकि॰ युद्ध॰३) । आगे राक्षसोंकी संख्या न बढ़े, इसके लिये उन्होंने भयंकर गर्जना करके राक्षसियोंके गर्भ भी गिरा दिये‒
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी ।
गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी ॥
(मानस ५/२८/१)
कारण कि भगवान्का अवतार राक्षसोंका विनाश करनेके लिये हुआ है‒‘विनाशय च दुष्कृताम्’ (गीता ४/८)और हनुमान्जीको भगवान्का कार्य ही करना है‒‘राम काज लगि तव अवतारा’ (मानस ४/३०/३) ।
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