🚩🔱 ❄ «ॐ»«ॐ»«ॐ» ❄ 🔱🚩
※══❖═══▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩═══❖══※
🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹🔱💧संत अमृत वाणी💧🔱🌹
🌟 भक्तशिरोमणि श्रीहनुमान्जीकी दास्य-रति :
(गत ब्लॉगसे आगेका)
हनुमान्जीकी वियोग-रति भी विचित्र ही है । लौकिक अथवा पारमार्थिक जगत्में कोई भी व्यक्ति अपने इष्टका वियोग नहीं चाहता । परन्तु भगवान्का कार्य करनेके लिये तथा उनका निरन्तर स्मरण करनेके लिये, उनका गुणानुवाद (लीला-कथा) सुननेके लिये हनुमान्जी भगवान्से वियोग-रतिका वरदान माँगते हैं‒
यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले ।
तावच्छरीरे वत्स्यन्तु प्राणा मम न संशयः ॥
(वाल्मीकि॰उत्तर॰४०/१७)
‘वीर श्रीराम ! इस पृथ्वीपर जबतक रामकथा प्रचलित रहे, तबतक निःसन्देह मेरे प्राण इस शरीरमें ही बसे रहें ।’
कोई प्रेमास्पद भी अपने प्रेमीसे वियोग नहीं चाहता । परन्तु भगवान् श्रीराम जब परमधाम पधारने लगे, तब वे भक्तोंकी सहायता, रक्षाके लिये हनुमान्जीको इस पृथ्वीपर ही रहनेकी आज्ञा देते हैं । यह भी एक विशेष बात है ! भगवान् कहते हैं‒
जीविते कृतबुद्धिस्त्वं मा प्रतिज्ञां वृथा कृथाः ।
मत्कथाः प्रचरिष्यन्ति यावल्लोके हरिश्वर ॥
तावद् रमस्व सुप्रीतो मद्वाक्यमनुपालयन् ।
एवमुक्तस्तु हनुमान् राघवेण महात्मना ॥
वाक्यं विज्ञापयामास परं हर्षमवाप च ।
(वाल्मीकि॰उत्तर॰ १०८/३३-३५)
‘हरीश्वर ! तुमने दीर्घकालतक जीवित रहनेका निश्चय किया है । अपनी इस प्रतिज्ञाको व्यर्थ न करो । जबतक संसारमें मेरी कथाओंका प्रचार रहे, तबतक तुम भी मेरी आज्ञाका पालन करते हुए प्रसन्नतापूर्वक विचरते रहो । महात्मा श्रीरघुनाथजीके ऐसा कहनेपर हनुमान्जीको बड़ा हर्ष हुआ और वे इस प्रकार बोले‒’
यावत् तव कथा लोके विचरिष्यति पावनी ॥
तावत् स्थास्यामि मेदिन्यां तवाज्ञामनुपलयन् ।
(वाल्मीकि॰ उत्तर॰ १०८/३५-३६)
इसलिये हनुमान्जीके लिये आया है‒‘राम चरित सुनिबे को रसिया ।’
एक बार भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न‒तीनों भाइयोंने माता सीताजीसे मिलकर विचार किया कि हनुमान्जी हमें रामजीकी सेवा करनेका मौका ही नहीं देते, पूरी सेवा अकेले ही किया करते हैं । अतः अब रामजीकी सेवाका पूरा काम हम ही करेंगे, हनुमान्जीके लिये कोई काम नहीं छोड़ेंगे । ऐसा विचार करके उन्होंने सेवाका पूरा काम आपसमें बाँट लिया । जब हनुमान्जी सेवाके लिये सामने आये, तब उनको रोक दिया और कहा कि आजसे प्रभुकी सेवा बाँट दी गयी है, आपके लिये कोई सेवा नहीं है । हनुमान्जीने देखा कि भगवान्के जम्हाई (जम्भाई) आनेपर चुटकी बजानेकी सेवा किसीने भी नहीं ली है । अतः उन्होंने यही सेवा अपने हाथमें ले ली । यह सेवा किसीके खयालमें ही नहीं आयी थी ! हनुमान्जीमें प्रभुकी सेवा करनेकी लगन थी । जिसमें लगन होती है, उसको कोई-न-कोई सेवा मिल ही जाती है । अब हनुमान्जी दिनभर रामजीके सामने ही बैठे रहे और उनके मुखकी तरफ देखते रहे; क्योंकि रामजीको किस समय जम्हाई आ जाय, इसका क्या पता ? जब रात हुई, तब भी हनुमान्जी उसी तरह बैठे रहे । भरतादि सभी भाइयोंने हनुमान्जीसे कहा कि रातमें आप यहाँ नहीं बैठ सकते, अब आप चले जायँ । हनुमान्जी बोले कैसे चला जाऊँ ? रातको न जाने कब रामजीको जम्हाई आ जाय !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹۞☀∥ राधेकृष्ण: शरणम् ∥☀۞🌹
※❖ॐ∥▩∥श्री∥ஜ ۩۞۩ ஜ∥श्री∥▩∥ॐ❖※
🌹: कृष्णा : श्री राधा प्रेमी : 🌹
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मोबाइल नं. : 9009290042
👉🏻 एक बार प्रेम से बोलिए ...
🙌🏻 जय जय श्री राधे 🙌🏻
🌹 प्यारी .. श्री .. राधे ..🌹
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🌹🌟 राधे नाम संग हरि बोल 🌟🌹
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🌟 भक्तशिरोमणि श्रीहनुमान्जीकी दास्य-रति :
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हनुमान्जीकी वियोग-रति भी विचित्र ही है । लौकिक अथवा पारमार्थिक जगत्में कोई भी व्यक्ति अपने इष्टका वियोग नहीं चाहता । परन्तु भगवान्का कार्य करनेके लिये तथा उनका निरन्तर स्मरण करनेके लिये, उनका गुणानुवाद (लीला-कथा) सुननेके लिये हनुमान्जी भगवान्से वियोग-रतिका वरदान माँगते हैं‒
यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले ।
तावच्छरीरे वत्स्यन्तु प्राणा मम न संशयः ॥
(वाल्मीकि॰उत्तर॰४०/१७)
‘वीर श्रीराम ! इस पृथ्वीपर जबतक रामकथा प्रचलित रहे, तबतक निःसन्देह मेरे प्राण इस शरीरमें ही बसे रहें ।’
कोई प्रेमास्पद भी अपने प्रेमीसे वियोग नहीं चाहता । परन्तु भगवान् श्रीराम जब परमधाम पधारने लगे, तब वे भक्तोंकी सहायता, रक्षाके लिये हनुमान्जीको इस पृथ्वीपर ही रहनेकी आज्ञा देते हैं । यह भी एक विशेष बात है ! भगवान् कहते हैं‒
जीविते कृतबुद्धिस्त्वं मा प्रतिज्ञां वृथा कृथाः ।
मत्कथाः प्रचरिष्यन्ति यावल्लोके हरिश्वर ॥
तावद् रमस्व सुप्रीतो मद्वाक्यमनुपालयन् ।
एवमुक्तस्तु हनुमान् राघवेण महात्मना ॥
वाक्यं विज्ञापयामास परं हर्षमवाप च ।
(वाल्मीकि॰उत्तर॰ १०८/३३-३५)
‘हरीश्वर ! तुमने दीर्घकालतक जीवित रहनेका निश्चय किया है । अपनी इस प्रतिज्ञाको व्यर्थ न करो । जबतक संसारमें मेरी कथाओंका प्रचार रहे, तबतक तुम भी मेरी आज्ञाका पालन करते हुए प्रसन्नतापूर्वक विचरते रहो । महात्मा श्रीरघुनाथजीके ऐसा कहनेपर हनुमान्जीको बड़ा हर्ष हुआ और वे इस प्रकार बोले‒’
यावत् तव कथा लोके विचरिष्यति पावनी ॥
तावत् स्थास्यामि मेदिन्यां तवाज्ञामनुपलयन् ।
(वाल्मीकि॰ उत्तर॰ १०८/३५-३६)
इसलिये हनुमान्जीके लिये आया है‒‘राम चरित सुनिबे को रसिया ।’
एक बार भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न‒तीनों भाइयोंने माता सीताजीसे मिलकर विचार किया कि हनुमान्जी हमें रामजीकी सेवा करनेका मौका ही नहीं देते, पूरी सेवा अकेले ही किया करते हैं । अतः अब रामजीकी सेवाका पूरा काम हम ही करेंगे, हनुमान्जीके लिये कोई काम नहीं छोड़ेंगे । ऐसा विचार करके उन्होंने सेवाका पूरा काम आपसमें बाँट लिया । जब हनुमान्जी सेवाके लिये सामने आये, तब उनको रोक दिया और कहा कि आजसे प्रभुकी सेवा बाँट दी गयी है, आपके लिये कोई सेवा नहीं है । हनुमान्जीने देखा कि भगवान्के जम्हाई (जम्भाई) आनेपर चुटकी बजानेकी सेवा किसीने भी नहीं ली है । अतः उन्होंने यही सेवा अपने हाथमें ले ली । यह सेवा किसीके खयालमें ही नहीं आयी थी ! हनुमान्जीमें प्रभुकी सेवा करनेकी लगन थी । जिसमें लगन होती है, उसको कोई-न-कोई सेवा मिल ही जाती है । अब हनुमान्जी दिनभर रामजीके सामने ही बैठे रहे और उनके मुखकी तरफ देखते रहे; क्योंकि रामजीको किस समय जम्हाई आ जाय, इसका क्या पता ? जब रात हुई, तब भी हनुमान्जी उसी तरह बैठे रहे । भरतादि सभी भाइयोंने हनुमान्जीसे कहा कि रातमें आप यहाँ नहीं बैठ सकते, अब आप चले जायँ । हनुमान्जी बोले कैसे चला जाऊँ ? रातको न जाने कब रामजीको जम्हाई आ जाय !
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